स्टेशन के किनारे पे

Some moments I captured on my travel back home from trip to Mumbai on 12-03-2018. 
Here, I narrate the scene I saw at the railway station where I saw a couple and wrote these lines


स्टेशन  के  एक  किनारे  पे  एक  अधेड़  उम्र  का  ये  जोड़ा  बैठे  देखा
दोनों  एक  दूसरे  में  मशगूल  थे
कितनी  गाड़ियां  आयी , गयी   उनको  किसी  की  न  पड़ी  थी .
जैसे  उनकी  पूरी  दुनिया  एक  दूसरे  में  ही  बस्ती  थी .

वो  कभी  किसी  को  वह  देखते  फिर  आपस  में  कुछ  इशारा  करते 
आँखों  ही  आँखों  में  एक  दूसरे  से  कुछ  कह  जाते
उनकी  मंद  मंद   मुस्कराहट  उनकी  आँखों  में  साफ़  झलक  रही  थी
इसमें  ही  उनका  प्यार  दीखता  था .

तभी  औरत  के  बुरखे  में  से  एक  छोटा  बच्चा  निकला
जैसे  अभी  ढूढ़  पि  के  तृप्त  हुआ  ख़ुशी  से  अपने  होने  का  एहसास  कर  रहा  हो .

उसकी  खिलखिलाहट   से  जैसे  स्टेशन  का  वो  पूरा  कोना  चहक  गया  हो .
बाजु  में   बैठे  एक  बुज़ुर्ग  अंकल  भी  उसकी  ये  अठखेलियां   देख  के  हस  पड़े .
उस   बच्चे  को  अपने  पास  बुलाया  और  खेलने  लग  गए .
ऐसा  लग  रहा  था  मनो  वो  अंकल  अपने  अकेलेपन  से  झगड़  रहे  हो  और  उससे  भागने  का  बहाना  ढून्ढ  रहे  हो .

फिर  मेरी  नज़र  उस  जोड़े  पे  पड़ी  फिर  से  देखा  वो  दोनों  एक  दूसरे  को  देख  के
मुस्कुरा  रहे  थे .
हाथो  में  हाथ  पकडे  एक  दूसरे  की शांति में खोये हुए थे.
तभी मेरी ट्रैन अपने अगले स्टॉप की और चल पड़ी और वो जोड़ा वही पीछे रह गया.

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