लहरों से बातें



यूँ पहाड़ पर बैठे इन लहरों को निहारते हुए
हम इस दरिया का किनारा ढूंढते रह गये यूँ सुन्न से हो गये इनके शोर में यूँ ये हवा हमारे बदन से छू कर निकल गयी हम वहीं बैठे फिर भी इन लहरों को निहारते रह गये शायद ढूंढते रहै उन पलों को जो हमे कभी हमसे चुरा के ले गए लगता है इन लहरों के शोर में हम खुद को खुद में ही ढूंढते रह गये

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